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तीन प्रकार के भक्त या शिष्य होते हैं। एक होते हैं आम संसारी भक्त, जो गुरुओं के पास आते हैं, उपदेश को सुनते हैं, कथा-वार्ताएँ सुनते हैं, जप-ध्यान करते हैं, कुछ-कुछ उनके उद्देश्यों को अपने जीवन में लाने का प्रयास करते हैं। ये सामान्य निगुरे आदमी से उन्नत तो होते जाते हैं लेकिन इससे भी दूसरे प्रकार के साधक ज्यादा नजदीक पहुँच जाते हैं, जिन्हें कहा जाता है अंतेवासी, आश्रमवासी। ये गुरु के आदर्शों को, उद्देश्यों को आत्मसात करके समाज तक फैलाने की दैवी सेवा खोज लेते हैं।